हम हारे हुए लोग हैं लेकिन जीवन की होड़ में रहे हैं बरहमेश रहेंगे भी दिग्विजय का इतिहास नहीं होगा मेरा पर जीवन की गूँज में हमारी ऊष्मा होगी जरूर जरूर हम शब्दों में अपना होना छोड़ जाएँगे
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ